100 साल का संघ: गांधी से असहमति ने जन्म दिया RSS को छवि
100 साल का संघ: जानिए कैसे गांधी की मुस्लिम नीति से असहमत एक कांग्रेसी नेता डॉ. हेडगेवार ने 1925 में RSS की स्थापना की। पढ़ें संघ के जन्म और उसके शुरुआती इतिहास की कहानी।

100 साल का संघ, एपिसोड-1: मुस्लिमों का साथ देने पर गांधी से नाराज एक कांग्रेसी ने बनाया RSS
भारत की आज़ादी का इतिहास केवल अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ संघर्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन विचारधाराओं की भी कहानी है जिन्होंने समाज और राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। इन्हीं विचारधाराओं में से एक है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), जिसकी स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की। यह संगठन अब 100 साल के पड़ाव की ओर बढ़ रहा है और भारतीय राजनीति, संस्कृति और समाज में गहरी छाप छोड़ चुका है।
गांधी की नीति और असहमति
1920 के दशक में भारत में आज़ादी की लड़ाई जोरों पर थी। महात्मा गांधी ने अहिंसा और हिंदू-मुस्लिम एकता को अपनी रणनीति का अहम हिस्सा बनाया। उनका मानना था कि अगर हिंदू और मुस्लिम मिलकर अंग्रेज़ों के खिलाफ़ खड़े होंगे, तो स्वतंत्रता संघर्ष और मज़बूत होगा।
लेकिन कांग्रेस के भीतर ही कुछ नेताओं को गांधी की इस नीति से असहमति थी। उनका तर्क था कि गांधी, मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदुओं के हितों से समझौता कर रहे हैं। विशेष रूप से खिलाफ़त आंदोलन के समय जब गांधी ने मुसलमानों के समर्थन में खुलकर आवाज़ उठाई, तब यह असहमति और बढ़ गई।
डॉ. हेडगेवार का निर्णय
डॉ. हेडगेवार कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता और क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित व्यक्ति थे। वे नागपुर में रहते थे और कांग्रेस के आंदोलनों में हिस्सा भी लेते थे। लेकिन समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि गांधी की नीतियां, खासकर मुस्लिमों को लेकर उनका झुकाव, हिंदू समाज की एकता और पहचान को कमजोर कर रहा है।
इसी असंतोष के कारण 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की नींव रखी। उनका उद्देश्य था—हिंदू समाज को संगठित करना, उनमें अनुशासन और राष्ट्रप्रेम की भावना भरना, ताकि वे किसी भी चुनौती का सामना कर सकें।
RSS का शुरुआती स्वरूप
शुरुआत में संघ का स्वरूप छोटा था। इसमें रोज़ाना शाखाओं के ज़रिए युवाओं को शारीरिक प्रशिक्षण, देशभक्ति की शिक्षा और अनुशासन सिखाया जाता था। हेडगेवार का मानना था कि अगर हिंदू समाज मजबूत और संगठित होगा तो वह न केवल अंग्रेज़ों से लड़ेगा बल्कि भविष्य में अपनी पहचान भी बचा पाएगा।
RSS ने खुद को उस समय की राजनीति से दूर रखकर एक सांस्कृतिक संगठन के रूप में स्थापित किया। धीरे-धीरे इसकी शाखाएँ महाराष्ट्र और अन्य प्रांतों में फैलने लगीं।
गांधी और संघ
हालांकि RSS सीधे तौर पर गांधी के खिलाफ़ नहीं खड़ा हुआ, लेकिन संघ की विचारधारा गांधी की नीतियों से अलग थी। गांधी का ज़ोर संपूर्ण हिंदुस्तान की एकता पर था, वहीं RSS का फोकस हिंदू समाज की मज़बूती पर। यही वैचारिक अंतर आगे चलकर भारतीय राजनीति में बड़ा असर छोड़ गया।
निष्कर्ष
आज जब RSS अपने 100 साल पूरे करने जा रहा है, तो उसके शुरुआती इतिहास को समझना बेहद ज़रूरी हो जाता है। यह केवल एक संगठन की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस दौर की राजनीतिक असहमति और वैचारिक संघर्ष की झलक है, जब भारत अंग्रेज़ों से आज़ादी की जंग लड़ रहा था।
RSS की स्थापना इस बात का प्रतीक है कि स्वतंत्रता संग्राम केवल एक रास्ते से नहीं, बल्कि अनेक विचारधाराओं और दृष्टिकोणों के साथ आगे बढ़ा।