चित्तौड़गढ़ का इतिहास
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास 7वीं शताब्दी से शुरू होता है, जो मेवाड़ की राजधानी था। यह किला अपनी वीरता, बलिदान और राजपूती संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है।

चित्तौड़गढ़ किला भारत के राजस्थान राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक दुर्ग है, जो देश के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण किलों में से एक है। यह किला मेवाड़ की वीरता, बलिदान और साहस का प्रतीक माना जाता है। इसका इतिहास राजपूत शासकों, खासकर गुहिला (गहलोत) और सिसोदिया वंश से जुड़ा हुआ है।
किले का निर्माण और प्रारंभिक इतिहास
चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण 7वीं शताब्दी में मौर्य वंश के राजा चित्रांगद मौर्य ने करवाया था। कहा जाता है कि यह किला 437 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है और यह एक पहाड़ी (180 मीटर ऊँची) पर स्थित है, जिससे इसे स्वाभाविक सुरक्षा प्राप्त थी।
प्रमुख ऐतिहासिक घटनाएँ
1303 ई. – अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण:
अलाउद्दीन खिलजी ने राणा रतन सिंह के शासनकाल में चित्तौड़ पर आक्रमण किया। ऐसा कहा जाता है कि खिलजी रानी पद्मिनी की सुंदरता से प्रभावित था और उसने किले पर आक्रमण किया। इस युद्ध के दौरान, रानी पद्मिनी और अन्य राजपूत महिलाओं ने जौहर (आत्मबलिदान) कर लिया, जबकि राजपूत सैनिकों ने आखिरी सांस तक युद्ध लड़ा।
1535 ई. – गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह का आक्रमण:
बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया, जिसके परिणामस्वरूप रानी कर्णावती और हजारों महिलाओं ने फिर से जौहर कर लिया, जबकि राजपूत योद्धाओं ने अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी।
1567 ई. – मुगल सम्राट अकबर का आक्रमण:
अकबर ने चित्तौड़गढ़ पर हमला किया और इसे जीत लिया। इस युद्ध में हजारों राजपूतों ने वीरगति प्राप्त की और यह तीसरी बार था जब चित्तौड़ में जौहर हुआ।
किले की विशेषताएँ
चित्तौड़गढ़ किला अपनी भव्यता और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। इसमें कई महत्वपूर्ण स्मारक हैं:
कीर्ति स्तंभ – यह स्तंभ जैन संत आदिनाथ को समर्पित है और इसे 12वीं शताब्दी में बनवाया गया था।
विजय स्तंभ – इसे महाराणा कुम्भा ने 1448 ई. में महमूद ख़िलजी पर विजय की स्मृति में बनवाया था।
मीराबाई मंदिर – यह मंदिर भक्तिमती मीरा बाई से जुड़ा हुआ है।
गौमुख कुंड – एक प्राकृतिक जलस्रोत जो किले के भीतर स्थित है।
रानी पद्मिनी महल – कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहां अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी की झलक देखी थी।
विरासत और महत्त्व
चित्तौड़गढ़ किला राजस्थान के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति का प्रतीक है। इसे 2013 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिली। यह किला न केवल भारत के इतिहास में बल्कि दुनिया भर में राजपूती शौर्य और बलिदान की मिसाल बना हुआ है।
निष्कर्ष
चित्तौड़गढ़ किला केवल एक स्थापत्य चमत्कार ही नहीं, बल्कि राजपूत शौर्य, बलिदान और आत्मसम्मान की अनूठी गाथा भी है। यह किला आज भी इतिहास प्रेमियों, पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।