स्पेस स्टेशन में 18 दिन रहकर लौटे शुभांशु छवि

स्पेस स्टेशन में 18 दिन बिताकर धरती पर लौटे भारतीय वैज्ञानिक शुभांशु ने अंतरिक्ष में भारत की तकनीकी प्रगति का नया अध्याय रचा। जानें उनकी इस ऐतिहासिक यात्रा की पूरी कहानी।

स्पेस स्टेशन में 18 दिन रहकर लौटे शुभांशु छवि
स्पेस स्टेशन में 18 दिन रहकर लौटे शुभांशु छवि

अंतरिक्ष में 18 दिन: शुभांशु की अविस्मरणीय यात्रा

नमस्कार दोस्तों! मैं शुभांशु, और आज मैं आपके साथ अपनी ज़िंदगी का सबसे असाधारण अनुभव साझा करने जा रहा हूँ – अंतरिक्ष स्टेशन में बिताए मेरे 18 दिन! यह किसी सपने से कम नहीं था, और अब जब मैं पृथ्वी पर वापस आ गया हूँ, तो भी मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि यह सब सच था।

सफर की शुरुआत

लॉन्च पैड पर खड़े होकर रॉकेट को देखना एक अविश्वसनीय अहसास था। ज़ोरदार कंपन, इंजन की गड़गड़ाहट और फिर… अचानक ऊपर की ओर धक्का! कुछ ही मिनटों में हम वायुमंडल को चीरते हुए अंतरिक्ष के विशाल खालीपन में पहुँच गए। खिड़की से पृथ्वी को देखना – एक नीले-हरे रंग का संगमरमर का गोला – ऐसा नज़ारा था जिसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता।

स्पेस स्टेशन में जीवन

अंतरिक्ष स्टेशन में पहला दिन थोड़ा अजीब था। हर चीज़ तैर रही थी! खाना-पीना, सोना, यहाँ तक कि रोज़मर्रा के काम भी गुरुत्वाकर्षण की गैर-मौजूदगी में एक चुनौती थे। लेकिन कुछ ही दिनों में मैं इस 'फ़्लोटिंग' जीवन का आदी हो गया।

मेरा दिन सुबह जल्दी शुरू होता था। हम वैज्ञानिक प्रयोग करते थे, स्टेशन का रखरखाव करते थे, और निश्चित रूप से, पृथ्वी से तस्वीरें और वीडियो लेते थे। रात में, जब सारे काम पूरे हो जाते थे, मैं खिड़की से बाहर घंटों तक तारों को निहारता था। वे इतने करीब और चमकदार दिखते थे कि जैसे आप उन्हें छू सकते हैं।

शून्य गुरुत्वाकर्षण में काम और मस्ती

प्रयोग करना एक रोमांचक अनुभव था। शून्य गुरुत्वाकर्षण में तरल पदार्थों का व्यवहार देखना, पौधों का अध्ययन करना, और नई तकनीकों का परीक्षण करना अद्भुत था। कभी-कभी, जब काम खत्म हो जाता था, तो हम साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ मस्ती करते थे – एक-दूसरे को स्टेशन के एक कोने से दूसरे कोने तक धकेलते थे, या पानी के बुलबुलों से खेलते थे!

पृथ्वी की सुंदरता और उसकी संवेदनशीलता

अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखना एक गहरा अनुभव था। उसकी सुंदरता, उसके रंग – महासागरों का गहरा नीला, बादलों का सफ़ेद, और भूमि का भूरा-हरा – सब कुछ मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। लेकिन साथ ही, मैंने उसकी संवेदनशीलता को भी महसूस किया। वायुमंडल की पतली परत एक नाजुक कंबल की तरह दिखती थी जो हमें इस विशाल ब्रह्मांड में बचा रही थी। इसने मुझे हमारे ग्रह की रक्षा करने के महत्व का एहसास कराया।

वापसी और नया दृष्टिकोण

18 दिन पलक झपकते ही बीत गए। वापसी की प्रक्रिया भी उतनी ही रोमांचक थी जितनी यात्रा की शुरुआत। कैप्सूल में बैठकर पृथ्वी की ओर लौटना, वायुमंडल में फिर से प्रवेश करना और फिर ज़मीन पर उतरना – यह एक अद्भुत अनुभव था।

अब जब मैं वापस आ गया हूँ, तो मेरे जीवन के प्रति मेरा नज़रिया बदल गया है। मैंने सीखा है कि हम कितने छोटे हैं और ब्रह्मांड कितना विशाल। मैंने हमारे ग्रह की सुंदरता और उसकी रक्षा करने की हमारी ज़िम्मेदारी को महसूस किया है। यह यात्रा सिर्फ़ अंतरिक्ष की नहीं थी, बल्कि अपने अंदर की भी थी।

अगर मुझे फिर से मौका मिले, तो मैं एक पल भी नहीं हिचकिचाऊँगा। यह अनुभव जीवन भर मेरे साथ रहेगा, और मैं इसे हमेशा संजो कर रखूँगा।